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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

What is IPv6 in Networking | Explain difference between IPv4 vs IPv6

Explain difference between IPv4 vs IPv6 in Hindi

What is IP Address आईपी एड्रेस क्या होता है : IP address का पूरा नाम इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस होता है | जब भी कोई डिवाइस (कम्प्यूटर्स, टेबलेट्स स्मार्टफोन्स आदि) इंटरनेट से कनेक्ट होते है तो उस डिवाइस को एक यूनिक एड्रेस दिया जाता है जो की उस डिवाइस की इंटरनेट पर पहचान बताने के साथ इंटरनेट पर दूसरी डिवाइस से कम्यूनिकेट करने के काम आता है | इंटरनेट के साथ साथ किसी भी नेटवर्क (LAN or WAN) मे डिवाइस को आपस मे कनेक्ट एंड कम्यूनिकेट करने के लिए IP address की जरुरत होती है यह उसी प्रकार है जैसे घर मे सभी सदस्यों के यूनिक नाम दिए जाते है जिससे की घर के सदस्य एक दूसरे को उनके नाम से जाने और कम्यूनिकेट कर सके | इस प्रकार IP एड्रेस दो काम करता है –  एक पहचान बताने के लिए और दूसरा लोकेट करने के लिए |
IP एड्रेस न्यूमेरिकल फॉर्मेट मे होता है जिसको की ह्यूमन रीडेबल फॉर्मेट कहते है जिससे की हम लोग IP को समझ सके जैसे की 152.68.254.10 (IPv4), 2041:0000:130F:0000:0:667:4:2 (IPv6)| IP एड्रेस के दो अलग अलग versions है – IPv4 and IPv6 | IPv4 पुराना व् सबसे जयदा use मे आने वाला फॉर्मेट है जबकि IPv6 धीरे धीरे प्रचलन मे आ रहा है और IPv4 को रीप्लेस कर रहा है | आइए IPv6 को विस्तार से देखते है 
IPv6 kya hota hai : IPv6 का पूरा नाम इंटरनेट प्रोटोकॉल version 6 होता है और यह IPv4 का अपग्रेडेड वर्शन है| यह IPv6 का काम भी वही है जो IPv4 का होता है –  इंटरनेट पर communicate करने के लिए डिवाइस को यूनिक न्यूमेरिकल IP एड्रेस प्रोवाइड करना | IPv6 को IETF – इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फाॅर्स आर्गेनाइजेशन (जो की इंटरनेट टेक्नोलॉजीज को डेवेलोप करती है) ने डेवलप किया | 1990 के बाद जब इंटरनेट users की ग्रोथ होने लगी तब IPv4 के अलावा ऐसी technology की जरुरत हुई जो की ज्यादा नेटवर्क एंड इंटरनेट users को सपोर्ट कर सके | IPv4, 32-bit address को use करती है एवं 4.3 (2^32 IP addresses in total) million एड्रेस को simultaneously support कर सकती है जबकि IPv6, 128-bit address को use करती है एवं 3.4×10^128 (2^128 Internet addresses) |
IPv6 एड्रेस को use करने के फायदे –
  1. IP एड्रेस size 32 bits से बढ़कर 128 bits हो गयी जिससे इंटरनेट पर ज्यादा डिवाइस को सपोर्ट किया जा सकता है|
  2. Header फॉर्मेट सिंपल होता है |
  3. ज्यादा efficient राउटिंग पॉसिबल है : IPv6 मे राउटिंग टेबल size reduces हो जायगी जिससे राउटिंग ज्यादा efficient and hierarchical होगी | IPv6 मे ISP अपने कस्टमर के IP networks को सिंगल prefix करके इंटरनेट पर IPv6 को announce कर सकता है |
  4. यह multicast सपोर्ट करने की वजह से लार्ज डाटा पैकेट्स को simultaneously भेजता है जिससे की बैंडविड्थ को पूरा utilize किया जा सके|
  5. IPV6 मे नेटवर्क एड्रेस ट्रांसलेशन (NAT) की जरुरत नहीं होगी जिससे सही मायने मे end to end डिवाइस connectivity होगी |
  6. यह एड्रेस auto-configuration जिसको की एड्रेस असाइनमेंट कहते है सपोर्ट करता है|
  7. IP के लिए मैन्युअल कॉन्फ़िगरेशन ya DHCP की जरुरत नहीं है|
  8. Built-in ऑथेंटिकेशन एंड प्राइवेसी सपोर्ट होता है |
            

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